Friday, July 6, 2007

अमृत वाणी

निंदक नियरे राखिये , आंगन कुटीर छवाय!
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे स्वभाये !!

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भयो न कोय !
ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय !!

बुरा jo देखन चला बुरा न मिलया कोय !
जों मन खोजा आपना तो मुझसे बुरा ना कोय !!

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोय !
अपना तन शीतल करे, औरहु शीतल होय !!